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Tuesday, July 9, 2019

Solution for Water Crisis

जल संकट और प्रउत व्यवस्था अंतर्गत उसका समाधान

_*---आदित्य कुमार*_

आये दिनों देखा जा रहा है कि बहुत से शहरों में जल स्तर काफी नीचे जाने से पानी की अनुपलब्धता हो रही है। इस प्रकार के खबर टीवी और समाचार पत्रो के माध्यम से भी मिल रहे हैं।

हमे ज्ञात हो कि भूजल का प्रयोग मनुष्यों के पीने के लिए किया जाना चाहिए जिसका भंडारण सीमित है। परंतु लोग अज्ञानतावश यह मान बैठे हैं कि भूजल का भंडारण सीमित नहीं, असीमित है और इसका बर्बादी जाने अनजाने में कर रहे हैं।

बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल निश्चय योजना भी स्थानीय प्रबंधन समितियों के उदाशीनता के कारण जल बर्बादी का कारण बन रहा है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार की परियोजना सिंचाई हेतु जल व्यवस्था भी जल बर्बादी का कारण बन रहा है।

आये दिन लोग भूजल का धरल्ले से दुरुपयोग कर रहे हैं। कही नल टूटकर पानी बह रहा है, तो कही पाईप फुट कर पानी बह रहा है। कही लोग नल खोलकर छोड़ देते हैं तो, कहीं खेतो में आवश्यकता से अधिक सिंचाई कर अनावश्यक ही जल का बर्बादी कर रहे हैं।

प्रउत व्यवस्था के अंतर्गत जल संरक्षण के उपाय.....


प्रउत प्रणेता श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा प्रउत व्यवस्था में जल संरक्षण पर विशेष बल दिया गया है। इसके लिए प्रउत दर्शन में बहुत सारे व्यवस्था का ज़िक्र किया गया है जिनमे से कुछ यहां उद्धत है.....

1. जल संरक्षण के मद्देनजर घर का निर्माण किया जाना चाहिए और बरसात के पानी का तलाब में संरक्षित कर उसका उपयोग सिंचाई, कपड़े साफ या अन्य कार्यों में करना चाहिए।

2. सिंचाई हेतु हमेशा नदियों में बहते पानी का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि भूजल का प्रयोग सिंचाई के लिए नहीं किया जाए। इस प्रकार हम भूजल को बचाकर रख सकते हैं और नदियों में बहते पानी का उपयोग कर उसे उपयोगी बना सकते हैं।

3. भूजल का प्रयोग सिर्फ और सिर्फ पीने हेतु ही करना चाहिए अन्य कार्यो के लिए नदियों और तालाबों के पानी का उपयोग करना चाहिए।

4. सरकार को इसपर बृहत रूप से प्लानिंग कर सिंचाईं हेतु नाड़ियों और नहरों का जाल बिछा देना चाहिए ताकि नदियों में बहते पानी का प्रयोग किया जा सके अन्यथा वह पानी समुद्र में मिलकर अनुपयोगी बन जाता है।

5. नदियों और झीलों पर छोटा छोटा डैम बनाकर पानी का संचय किया जाना चाहिए ताकि नदियां निरंतर बहती रहे।

6. अधिक से अधिक तालाबों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि बरसा जल का संचयन किया जा सके एवं उसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सके।

7. पानी का प्रयोग घर में भी आवश्यकता से अधिक नहीं किया जाना चाहिए। जितनी आवश्यकता हो उतना ही प्रयोग करनी चाहिए। साथ ही हमे जहां भी पानी बहता दिखे उसे तुरंत ठीक करना चाहिए।

इस प्रकार हम इस जल संकट से बच सकते हैं अन्यथा आने वाले अगले बीस बर्षो में पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा। आपका भविष्य आपके हांथो में है।




Posted by Abhishek at 7:41 AM No comments:
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Labels: dams, ground water, inter linking of rivers, irrigation, PROUT, rivers, solution, wastage of water, water crisis
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